Sunday, April 3, 2011

किसी रंजिश को हवा दो की मै ज़िंदा हू अभी : सुदर्शन फकिर


किसी रंजिश को हवा दो की मै ज़िंदा हू अभी
मुझ को एहसास दिला दो की मै ज़िंदा हू अभी


मेरे रुकने से मेरी साँसे भी रुक जायेंगी
फासले और बड़ा दो की मै ज़िंदा हू अभी


ज़हर पीने की तो आदत थी ज़मानेवालो
अब कोई और दवा दो की मै ज़िंदा हू अभी


चलती राहो में यू ही आँख लगी है 'फकीर'
भीड़ लोगो की हटा दो की मई ज़िंदा हू अभी



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