कविताये मायाजाल
Monday, April 4, 2011
क्या भला मुझको परखने के नतीजा निकला : मुज़फ्फर वारसी
क्या भला मुझको परखने के नतीजा निकला
ज़ख्म-इ-दिल आप की नज़रो से भी गहरा निकला
तोड़कर देख लिया आईना-इ-दिल तूने
तेरी सूरत के सिवा और बता क्या निकला
तिश्नगी जम गई पत्थर की तरह होंठो पर
डूब कर तेरे दरिया में मै प्यासा निकला
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