हर बार मांगती है नया चश्म-इ-यार दिल
इक दिल के किस तरह से बनाऊ हज़ार दिल
पूछा जो उस ने तालिब-इ-रोज़-इ-जजा है कौन
निकला मेरी ज़बान से बे-इख्तियार दिल
करते हो अहद-इ-वस्ल तो इतना रहे ख़याल
पैमान से ज़्यादा है नापायदार दिल
उस ने कहा है सब्र पडेगा रकीब का
ले और बेक़रार हुआ ई बेक़रार दिल
: दाग देहलवी
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