Thursday, March 17, 2011


शोला हु भड़काने की गुजारिश नहीं करता
सच मूह से निकल जाता है कोशिश नहीं करता
गिरती हुई दीवार का हमदर्द हू लेकिन
ते हुए सूरज की परस्तिश नही करता
माथे के पसीने की महक आये तो देखे
वो खून मेरे जिस्म में गर्दिश नहीं करता
हमदर्दी-इ-अहबाब से डरता हू 'मुज़फ्फर'
मै ज़ख्म तो रखता हु नुमाइश नहीं करता
: मुज़फ्फर वारसी

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