बदला न अपने आप को जो थे वही रहे
मिलते रहे सभी से मगर अजनबी रहे
दुनिया न जीत पाओ तो हारो न खुद को तुम
थोड़ी बहुत तो ज़हन में नाराज़गी रहे
अपनी तरह सभी को किसी की तलाश थी
हम जिसके भी करीब रहे दूर ही रहे
गुज़रो जो बाग़ से तो दुआ माँगते चलो
जिसमे खिले है फूल वो डाली हरी रहे
-निदा फाजली
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