Thursday, March 17, 2011

सोचा नही अच्छा बुरा देखा सूना कुछ भी नही : बशीर बद्र





सोचा नही अच्छा बुरा देखा सूना कुछ भी नही
माँगा खुदा से रात दिन तेरे सिवा कुछ भी नही
देखा तुझे सोचा तुझे चाहा तुझे पूजा तुझे
मेरी खता मेरी वफ़ा तेरी खता कुछ भी नही
जिस पर हमारी आख ने मोती बिछाए रात भर
भेजा वही कागज़ उसे हमने लिखा कुछ भी नही
इक शाम की दहलीज़ पर बैठे रहे वो देर तक
आखो से की बाते बहुत मूह से कहा कुछ भी नही
दो चार दिन की बात है दिल ख़ाक में सो जाएगा
जब आग पर कागज़ रखा बाक़ी बचा कुछ भी नही
अहसास की खुश्बू कहा, आवाज़ के जुगनू कहा
खामोश यादो के सिवा, घर में रहा कुछ भी नही

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