Tuesday, July 5, 2011

अब तो उठ सकता नही आँखों से बार-ऐ-इंतज़ार- हसरत मोहनी

अब तो उठ सकता नही आँखों से बार-ऐ-इंतज़ार
किस तरह काटे कोई लेल-ओ-नहार-ऐ-इंतज़ार

उन की उल्फत का यकी हो उन के आने की उम्मीद
हो ये दोनों सूरते तब है बहार-ऐ-इंतज़ार

मेरी आहे ना_रसा मेरी दुआए ना_कुबूल
या इलाही क्या करू मई शर्म_सार-ऐ-इंतज़ार

उन के ख़त की आरजू है उन के आमद का ख़याल
किस क़दर फैला हुआ है कारोबार-इ-इंतज़ार

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