Tuesday, July 5, 2011

न किसी की आँख का नूर हू न किसी के दिल का करार हू - बहादुर शाह ज़फर


न किसी की आँख का नूर हू न किसी के दिल का करार हू
जो किसी के काम न आ सके  मै वो एक मुश्त-इ-गुबार हू

न तो  मै किसी का हबीब हू न तो  मै किसी का रकीब हू
जो बिगड़ गया वो नसीब हू जो उजाड़ गया वो दयार हू

मेरा रंग-रूप बिगड़ गया मेरा यार मुझ से बिछाद गया
जो चमन फिजा में उजाड़ गया मई उसी की फसल-इ-बहार हू

पाए फातेहा कोई आये क्यू कोई चार फूल चदाये क्यू
कोई आके शम्मा जलाए क्यू  मै वो बेकसी का मज़ार हू

 मै नही हू नगमा-इ-जा_फिशा मुझे सुन के को_ई करेगा क्या
 मै बड़े बरोग की हू सदा मैं बड़े दुःख की पुकार हू

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