Sunday, July 24, 2011

सौ बार चमन महका सौ बार बहार आई : सूफी गुलाम मुस्तफा तबस्सुम


सौ बार चमन महका सौ बार बहार आई
दुनिया की वही रौनक दिल की वही तन्हाई

हर दर्द-इ-मुहब्बत से उलझा है गम-इ-हस्ती
क्या क्या हमें याद आया जब याद तेरी आई

देखे है बहुत हम ने हंगामे मुहब्बत के
आगाज़ भी रुसवाई अंजाम भी रुसवाई


ये बज़्म-इ-मुहब्बत है इस बज़्म-इ-मुहब्बत में
दीवाने भी सौदाई फर्जाने भी सौदाई

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